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सम्प हाउस फेल-पटना पानी मे गेल, मेंटेनेंस के पैसा के हो गेलई खेल, शहर के साथे सुशासन डूब गेल

सम्प हाउस फेल-पटना पानी मे गेल, मेंटेनेंस के पैसा के हो गेलई खेल, शहर के साथे सुशासन डूब गेल

NEWS4NATION DESK  : एक कवि महोदय जो कंकड़बाग इलाके में रहते हैं, सुबह-सुबह उनका कॉल आया। उन्होंने मुझे इस खबर का शीर्षक दे दिया। परेशान कवि महोदय बगैर रुके अपनी व्यथा सुनाते रहे। सरकार पर प्रहार करते रहे। व्यवस्था को कोसते रहे, आखिर में उन्हीने कहा कि क्या यही सुशासन है। शहर में कोई सहायता सरकार मुहैया करवा पाने में असमर्थ है सुदूर इलाकों में राहत के नाम पर क्या होता होगा भगवान मालिक।

बहरहाल वाकई कवि महोदय और आम जनता की चिंता जायज है। शहर में फिलहाल व्यवस्था नाम को कोई चीज नहीं दिख रहा। अब थोड़ा ऐसे समझिये, लापरवाही का हद देखिये। मौसम विभाग ने अलर्ट जारी कर दिया था उसके बाद भी नगर निगम से लेकर संप हाउस तक अलर्ट मोड में नहीं आया। अधिकारी कान में तेल डाल सोए रहे। परिणाम हुआ कि 72 घंटे पहले जारी किए अलर्ट के बाद भी जब सम्प हाउसों के खराब मोटर नहीं बनवाये गए और रात भर संप हाउस बंद रहे तो पटना दरिया बन गया और लोग उस में तैरने को विवश हो गए। जिम्मेदारी देने और लेने की बारी आई तब सब के सब एक दूसरे का गिरेबान पकड़ने में लग गए।

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सरकार को आप्त बैठक बुलाने पड़ी, लेकिन वह भी पर्याप्त साबित नहीं हो रहा है। लेकिन अब क्या होगा जब पटना के कई मुहल्लों में 6 फीट तक पानी भर आया है। बताया जा रहा है कि शहर के एक प्रमुख सम्प हाउस के स्टोरेज टैंक में इतना गर्द भरा है कि पानी खींचना  उसके लिए मुश्किल हो रहा है।

सम्प हाउस के मेंटेनेंस के नाम पर करोड़ों खर्च किए जाते हैं। लेकिन संप हाउस का मोटर अलर्ट के बाद भी आखिर क्यों नहीं बना इसका जवाब कोई देने को तैयार नहीं।  बारिश शुरू हो गयी। 4 दिन से मोटर खराब था। मोटर नहीं बनाया गया और शहर देखते देखते समुद्र में तब्दील हो गया। बताया जा रहा है कि कहीं वॉटर हौज में गाद  की वजह से सम्प हाउस बन्द हो गया,संदलपुर का तीन मोटर बंद था ।कई जगह डीजल के अभाव में, कई जगह बिजली के अभाव में तो कई जगह मोटर खराब होने की वजह से सम्प हाउस नहीं चलने से जलजमाव हुआ।

तो बड़ा सवाल यह है कि इसका जिम्मेदार है कौन? प्रदेश की बात छोड़ दें, राजधानी में भी सुशासन के एजेंडे पर न तो अधिकारी चलने को तैयार हैं और न नेता। उसका परिणाम यह है कि जिस प्रोजेक्ट के लिए पैसे की कोई कमी नहीं है उसके बाद भी मेंटेनेंस के नाम पर आये पैसे का बंदरबांट कर दिया जा रहा है और जनता को नारकीय जीवन भोगने के लिए विवश कर दिया जा रहा है। कहीं बिजली की वजह से तो कही डीजल न रहने की वजह से तो कही मोटर खराब होने की वजह से सम्प हाउस नहीं चलने का रोना रोया जा रहा है। 

कुल मिलाकर इस स्थिति में आपात बैठक बुलाने के बाद भी पर्याप्त व्यवस्था का उपाय नहीं कर पाना,प्राकृतिक आपदा का रोना रोना,क्या साबित करता है,कवि जी ठीक ही तो कह रहे है,शहर के साथे सरकार डूब गेल। 

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