बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

कौन थे राजा बहादुर कमल सिंह, जानिए रियासती हुकूमत के अंतिम बिहारी राजा की कहानी

कौन थे राजा बहादुर कमल सिंह, जानिए रियासती हुकूमत के अंतिम बिहारी राजा की कहानी

Patna: लोकतंत्र के पहले सांसद और रियासती हुकूमत के अंतिम राजा महाराजा बहादुर कमल सिंह का रविवार की सुबह 5 बजे निधन हो गया. महाराजा बहादुर कमल सिंह ने राज परिवार के पुराना भोजपुर स्थित कोठी में अंतिम सांस ली. निधन की खबर जैसे ही मिली पूरे शाहाबाद में शोक की लहर दौड़ गयी.

देश आजादी के जंजीरों से जब मुक्त हुआ तो इस देश में लोकतंत्र की स्थापना हुई और लोकतंत्र को पूरी तरह से बहाल करने के लिए साल 1952 में भारत का प्रथम चुनाव संपन्न हुआ. भारत में छोटी-छोटी लगभग 600 से ज्यादा रियासतें हुआ करती थीं. उन्हीं में से एक था बिहार के बक्सर जिले का डुमरांव स्टेट और इसके आखिरी महाराजा बहादुर कमल सिंह हुए. देश आजाद हुआ सिंलिंग एक्ट लगी, जरूरत से ज्यादा भूमि की हदबंदी होने लगी. फिर भी डुमरांव राज ने कई ऐसे काम किए जनमानस के लिए कि वो एक इतिहास साबित हुआ. साल 1952 का दौर था, आजादी के बाद पहली बार में चुनाव हुआ, बक्सर संसदीय क्षेत्र से निर्दलीय कैंडिडेट के रुप में कमल सिंह उस समय सबसे कम उम्र के 32 साल में सांसद चुन लिए गए और इनका निशान था कमल का फूल. संसद की सदन में पहुंचने के बाद कमल सिंह की कार्यशैली ने इन्हें तुर्क नेता के रुप में तो स्थापित किया ही इनकी एक अलग छवि निखरकर सामने आयी और लागातार 1962 तक सांसद बने रहे. हालांकि बाद के दौर में इन्हें हार का भी सामना करना पड़ा. 

राजनीति के लंबे वनवास के बाद कमल सिंह को भाजपा ने कमल का सिंबल दिया. बक्सर संसदीय लोकसभा सीट से वे 1989 में चुनाव लड़े लेकिन चुनाव परिणाम में सीपीआई के तेज नारायण सिंह ने इस सीट पर कब्जा जमाया. दूसरी बार 1991 मे भाजपा ने सिंबल देकर चुनाव लड़वाया लेकिन इस चुनाव में भी इन्हें हार का सामना करना पड़ा. चुनाव परिणाम में कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रो. केके तिवारी ने इस सीट पर विजय का पताका लहराया. उसके बाद से वे राजनीति में नहीं आये, लेकिन राजपरिवार से जुड़े सभी परिवारों का भाजपा के प्रति रुझान बना रहा.


राजा कर्ण सिंह, माधव राव सिंधिया, पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह, त्रिपुरा स्टेट, रीवा स्टेट सहित कई स्टेटों से डुमरांव महाराजा की रिश्तेदारी है. इसमें से कई परिवार राजनीति के शिखर पर हैं. साल 1980 में जिस कमल के फूल को भाजपा ने अपना सिंबल बनाया उसी को अपना सिंबल बनाकर 1952 से लेकर 1962 तक महाराजा बहादुर कमल सिंह निर्दलीय चुनाव जीतकर संसद पहुंचने वाले युवा सांसद हुए थे. इस रियासत की खास बात ये है कि आज भी यह परिवार कमल निशान पर ही भरोसा जताता है. 

महाराजा बहादुर कमल सिंह 6 साल से अस्वस्थ चल रहे थे. उनका पार्थिव शरीर डुमरांव नगर में भ्रमण करते हुए बांके बिहारी मंदिर स्थित मार्बल हॉल में रखा जायेगा, जहां शहरवासियों के साथ-साथ राजनीतिक हस्तियां और प्रशासनिक अधिकारी अंतिम दर्शन के बाद पुष्पांजलि अर्पित करेंगे. पूर्व सांसद का अंतिम संस्कार सोमवार की दोपहर बक्सर के चरित्रवन घाट पर किया जायेगा.

Suggested News