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मंच पर तो मौजूद थे लेकिन वरिष्ठ नेताओं ने शुरूआती संबोधन में 'साहब' का नाम लेना भी उचित नहीं समझा..मामला कुछ न कुछ तो है....

मंच पर तो मौजूद थे लेकिन वरिष्ठ नेताओं ने शुरूआती संबोधन में 'साहब' का नाम लेना भी उचित नहीं समझा..मामला कुछ न कुछ तो है....

PATNA: राजनीति की दुनिया में कद और पद पर कब संकट आ जाए कहना बड़ा हीं मुश्किल है।मतलब सियासत के शतरंज पर कौन मोहरा किस पर भारी पड़ेगा,कब आपकी रणनीति हार-नीति में बदल जाएगी,इसका अनुमान लागाना मुश्किल है लेकिन उदाहरण के तौर पर कई राजनीतिक किस्से सियासत की गली में सुनने को मिलते हैं.अब न्यूज4नेशन भी आपको ऐसा हीं किस्सा सुना रहा है।

कल तक जिसके आशीर्वाद और आश्वासन पर शहर से लेकर गांव तक लोग अपनी राजनीति चमकाते थे,आज उनको हीं उनके मातहत उनको आइना दिखाने में जुटे हैं.संभवतः इसी को सियासत का चरित्र कहते हैं. उनकी राजनीति की किताब कहती है कि साहब भी इसी तरह की सियासत के माहिर सिपहसलार रह चुके हैं. पिछले तीन दशकों में कई राजनीतिक दिग्गजों को अपने दंश से इन्होंने दोहरा दर्द दिया है। जिसका असर आज भी बखूबी देखा जा सकता है। कहा जाता है कि जिस गुरू ने कभी हाथ पकड़कर साहब को सियासत का क,ख,ग,घ सिखाया उसे साहब ने लगातार दो दशकों तक जलील किया।

इसी तरह वरिष्ठ नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है जिनकी सियासत की सांस को साहब ने संक्रमित करके रख दिया।उसका असर ऐसा हुआ कि उनका राजनीतिक जीवन हीं बेअसर हो गया। मतलब पार्टी में वरिष्ठ नेता के तौर पर तो बने रहे लेकिन उनकी राजनीतिक हैसियत न के बराबर कर दी गई।

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एक कहावत है –जो जैसा करेगा वैसा भरेगा।तो क्या मान लिया जाए कि यह साहब के करनी का हीं फल है ।अब भला बताइए कि साहब बयान पर बयान देते हों और कनीय नेताओं के द्वारा कायदे से उसको काट दिया जाता है।एक दफा नहीं बल्कि कई दफा इसके उदाहरण साफ तौर पर देखे जा रहे हैं.हद तो तब हो गई जब 18 सितबंर को एक जश्न में साहब मंच पर हीं मौजूद थे और वरिष्ठ नेताओं के द्वारा उनकी हैसियत उन्हें बताई जा रही थी। अब जरा कमाल देखिए और राजनीतिक कायदा देखिए, कि साहब के पद का नाम तो लिया जा रहा था लेकिन उनके नाम लेने से नेता परहेज कर रहे थे। इसको आप इस तरह से समझिए कि आप कमल का नाम तो ले रहे परंतु भाजपा का नाम लेने से परहेज कर रहे। 

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